Waqf Amendment Act SC Hearing: वक्फ बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जानें पल-पल अपडेट

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इससे एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम पर 10 याचिकाओं पर सुनवाई की थी, जिसमें संसद द्वारा पारित विधेयक के कुछ नए प्रावधानों पर रोक लगाने की संभावना है।

वक्फ याचिकाओं की सुनवाई करने वाली पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार और के वी विश्वनाथन शामिल हैं। बुधवार को याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ अधिनियम में संशोधन भारत के संविधान के अनुच्छेद 26 के खिलाफ हैं।

सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने अधिनियम के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें अदालतों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति और केंद्रीय वक्फ परिषदों और बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना शामिल हैं। वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कुल 10 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में सूचीबद्ध की गईं। ये याचिकाएं एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, आप नेता अमानतुल्लाह खान, एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, अरशद मदनी, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा, अंजुम कादरी, तैय्यब खान सलमानी, मोहम्मद शफी, मोहम्मद फजलुर्रहीम और आरजेडी नेता मनोज कुमार झा ने दायर की हैं।

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और समाजवादी पार्टी के नेता जिया-उर-रहमान बर्क द्वारा दायर नई याचिकाएं भी सूचीबद्ध की गईं। उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के समर्थन में केंद्र द्वारा पेश की गई उस दलील पर कड़ा संज्ञान लिया कि इस तर्क के अनुसार, हिंदू न्यायाधीशों की पीठ को वक्फ से संबंधित याचिकाओं की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के उन प्रावधानों पर सवाल कर रही थी जो केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति की अनुमति देते हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘क्या आप ये सुझाव दे रहे हैं कि मुस्लिमों सहित अल्पसंख्यकों को भी हिंदू धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन करने वाले बोर्ड में शामिल किया जाना चाहिए? कृपया इसे खुलकर बताएं।’’

मामले में केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रावधानों का बचाव करते हुए जोर दिया कि गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करना सीमित है और इन निकायों की मुख्य रूप से मुस्लिम संरचना को प्रभावित नहीं करता है। मेहता ने यह भी कहा कि गैर-मुस्लिम भागीदारी पर आपत्ति तार्किक रूप से न्यायिक निष्पक्षता तक विस्तारित हो सकती है और उस तर्क से, पीठ स्वयं मामले की सुनवाई करने से ‘‘अयोग्य’’ हो जाएगी। मेहता ने कहा कि यदि वैधानिक बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की उपस्थिति पर आपत्ति स्वीकार कर ली जाती है, तो वर्तमान पीठ भी मामले की सुनवाई नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा, ‘‘तब यदि हम उस तर्क के अनुसार चलते हैं, तो माननीय (मौजूदा पीठ के न्यायाधीश) इस मामले की सुनवाई नहीं कर सकते।’’

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘नहीं, माफ कीजिए मिस्टर मेहता, हम केवल न्याय निर्णय के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। जब हम यहां बैठते हैं, तो हम किसी धर्म के मानने वाले नहीं रह जाते हैं। हम पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं। हमारे लिए, एक पक्ष या दूसरा पक्ष समान है।’’

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