अमेरिका छल: स्वयं रूस पर निर्भर और भारत को दे रहा टैरिफ की धमकी

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपना पुराना स्वर अलापा है, वही बहाना, पहले की तरह रूस – यूक्रेन युद्ध। ट्रंप ने कहा, भारत न केवल भारी मात्रा में रूसी तेल खरीद रहा है, बल्कि खरीदे गए अधिकांश तेल को खुले बाजार में भारी मुनाफे पर बेच भी रहा है। उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि रूसी युद्ध मशीन द्वारा यूक्रेन में कितने लोग मारे जा रहे हैं। इस कारण से, मैं भारत की ओर से अमेरिका को दिए जाने वाले टैरिफ में भारी वृद्धि करूंगा। अब कहने वाले कहेंगे कि रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवाने और उसका वैविक श्रेय लेने के लिए ट्रंप ने भारत के खिलाफ तीखा रुख अपना लिया है। पर क्या यह वाकई सच है? क्योंकि यदि ऐसा होता तो सबसे पहले वे स्वयं अपने यहां रूस से आयातित सभी सामानों पर ब्रेक लगाते और उन्हें प्रतिबंधित करते, लेकिन यह नहीं हो रहा है। पाकिस्तान पर भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप आए दिन भारत को लेकर कोई न कोई टिप्पणी कर रहे हैं। जिसमें उनकी एक गंभीर टिप्पणी हाल ही में ब्रिक्स समूह में भारत की सक्रिय भूमिका और रूस से दोस्ती की आलोचना के रूप में भी देखने को मिली, जिसमें वह यहां तक गिर गए कि वह भारत के लिए कह बैठे, वे अपनी मरी हुई अर्थव्यवस्थाओं को साथ लेकर डूब सकते हैं। भारत की शुल्क नीति को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने देखा कि उनकी बातों का भारत पर कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने अपनी पूरी टीम ही विदेश सचिव मार्को रुबियो, वित्त सचिव स्कॉट बेसेंट और अब व्हाइट हाउस में डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ स्टीफन मिलर को भी भारत के विरोध और उस पर दबाव बनाने के लिए मैदान में उतार दिया है। ये सभी अलग-अलग तरीके से आज रूस से भारत की ऊर्जा खरीद को लेकर भारत की नीति की न सिर्फ भर्त्सना कर रहे हैं, बल्कि (भारत-रूस) संबंधों को अमेरिका और भारत के बीच के संबंधों के लिए एक कटि के तौर पर चिन्हित कर रहे हैं। इधर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नेतृत्व में भारतीय टीम है कि अमेरिका के किसी भी अनावश्यक दबाव के सामने नहीं झुकते हुए अपने रणनीतिक हितों के मुद्दे पर अंत अत तक अडिग है। भारत आज अमेरिका की आंख में आंख डालकर पूछ रहा है कि तुम कैसे आतंकवाद का पोषण करने वाले पाकिस्तान के साथ डील कर सकते हो? भारत आज पूछ रहा है कि रूस से भारत क्या लेगा या नहीं, यह तय करने के पहले अपने यहां अमेरिका तुम तो रूस के सामान खरीदना और उस पर निर्भर रहना पहले बंद करो। वस्तुतः इस मामले में गंभीर पड़ताल करने पर बहुत से तथ्य सामने आ जाते हैं। जो अमेरिका आज भारत को ज्ञान दे रहा है, वह स्वयं क्या कर रहा है? वह रूस से हर रोज करोड़ों डॉलर का व्यापार कर रहा है। जिसमें कि यह आंकड़े उसके अपने ट्रेड के हैं, किसी ने छद्म रूप से नहीं गढ़े हैं। संयुक्त राष्ट्र के COMTRADE डेटाबेस के अनुसार, 2024 में अमेरिका ने रूस से कुल 3.27 अरब डॉलर (लगभग रु. 24,000 करोड़) का सामान आयात किया । उर्वरक 1.30 बिलियन के जोकि कृषि उद्योग के लिए आवश्यक हैं। रत्न, कीमती धातुओं में पैलेडियम प्लेटिनम, हीरे आदि 878.1 मिलियन के खरीदें । अकार्बनिक रसायन, कीमती धातु यौगिक जोकि अमेरिका में रासायनिक उद्योग के लिए आवश्यक हैं वह 695.7 मिलियन के आयात किए। लकड़ी और लकड़ी उत्पाद जिसका उपयोग अमेरिका में निर्माण और फर्नीचर उद्योग के लिए होता है वह 89.4 मिलियन । परमाणु रिएक्टर, बॉयलर, मशीनरी, जिन्हें ऊर्जा क्षेत्र के लिए आवश्यक माना गया है, वह 80.8 मिलियन । खाद्य उद्योग के अवशेष, पशु आहार पशुपालन और कृषि उद्योग के लिए. 39.9 मिलियन अन्य धातुएं, सेरामिक्स विभिन्न उद्योगों के लिए 37.3 मिलियन । विमान और अंतरिक्ष यान, रक्षा और परिवहन उद्योग के लिए 34.9 मिलियन । लोहा और इस्पात जोकि अमेरिका में निर्माण और औद्योगिक उपयोग के लिए जरूरी है वह 13.2 मिलियन एवं अन्य विविध वस्त्र विभिन्न उद्योगों के लिए अति आवश्यक हैं, वह 10.9 मिलियन डॉलर में आयात मूल्य देकर अमेरिका द्वारा रूस से समय- समय पर मंगवाया गया है। इसी प्रकार से इस साल भी रूस से अनेक सामान आयात किए जा रहे हैं। 2025 के पहले पांच महीनों में, अमेरिका ने रूस से लगभग 2.1 अरब डॉलर का सामान आयात किया, जिसमें प्रमुख रूप से समृद्ध यूरेनियम (लगभग 596 मिलियन) और बिना परिष्कृत पैलैंडियम (लगभग 502 मिलियन) शामिल हैं। अभी भी अमेरिका का रूस से आयात मुख्य रूप से कृषि, रसायन, धातुएं और ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित है। कुछ विशेष वस्तुओं की आपूर्ति आज भी अमेरिकी उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है। अमेरिका की तरह कुछ अन्य देशों की भी तुलना की जा सकती है, हालांकि इसका वर्तमान में बहुत औचित्य नहीं लेकिन भविष्य में बहुत है, क्योंकि हो सकता है अमेरिका अन्य देशों से भी भारत पर दबाव बनाने को कहे। ऐसे में यह तथ्य भी जानना जरूरी है।
यूरोपीय संघ, रूस से गैस ( पाइपलाइन) – 2024 की स्थिति में लगभग 49.5bcm, और LNG (तरल गैस) के रूप में अतिरिक्त 24.2 bcm आयात हुए, जिससे रूस अब यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा LNG आपूर्तिकर्ता बन गया है (क़तर के बाद)। वहीं, 2025 Qw (अप्रैल-जून) में, EU ने रूस से LNG का लगभग 51% आयात किया और पाइपलाइन गैस का लगभग 37% हिस्सा रूस से था। 2025 की पहली पाँच महीनों में श्व ने 2.57 मिलियन टन रुसी मेटल उत्पाद आयात किए, जिसकी कुल कीमत €1.06 B रही, वह रूस को अदा की। जनवरी 2025 में Pig Iron की आयात मात्रा 474,540 टन तक पहुँच गई थी, इसमें प्रमुख देश थे, इटली (347,730 टन), लातविया, स्पेन, बेल्जियम पोलैंड । वस्तुतः आज जो देश रूस पर सार्वजनिक रूप से प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं, विशेषकर ल-7 देशों और यूरोपीय संघ वे अब भी रूस से कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं का आयात कर रहे हैं। यह स्थिति आर्थिक विवशता, ऊर्जा की निर्भरता, और कुछ हद तक strategic ambiguity का नतीजा है। अमेरिका के अलावा जर्मनी, इटली, फ्रांस, नीदरलैंड्स, स्पेन, बेल्जियम, जापान, दक्षिण कोरिया और तुर्की शामिल हैं, जिसमें कि तुर्की तो औपचारिक रूप से NATO सदस्य पर रूस के साथ अति सक्रिय व्यापार करता नजर आता है। आज यह सर्वविदित है कि एलएनजी और गैस का यूरोप में रूस से होनेवाला आयात 2024 और 2025 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया है। फ्रास, स्पेन, और बेल्जियम 2025 की पहली छमाही में रूस से सबसे ज्यादा रहल आयात करने वाले देश हैं। EU की कुल LNG का 51% हिस्सा 2025 में रूस से आया। अपने फायदे के लिए यूरोपीय देश रूसी LNG को प्रत्यक्ष प्रतिबंध में शामिल नहीं करते क्योंकि इसे ऊर्जा सुरक्षा का मामला बताया जाता है। इस तरह से देखें तो युरोप का कोई देश नहीं जो कम या अधिक आज रूस पर अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए निर्भर नहीं हो। यानी सभी रूस पर निर्भर नजर आते हैं।

 

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